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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 84  दैत्य नगरी को बहुत सुन्दर तरीके से सजाया गया था । महाराज वृषपर्वा ने अपना हृदय बड़ा करके देवयानी को पुत्री की तरह मानकर उसके विवाह का समस्त प्रबंध स्वयं किया था । सम्राट ययाति की प्रतिष्ठा के अनुरूप पाणिग्रहण संस्कार होना चाहिए यह सोचकर महाराज ने पूरे मनोयोग से इस विवाह की समस्त तैयारियां करवाई थीं । महाराज को यह भी लग रहा था कि देवयानी के साथ ही शर्मिष्ठा भी सम्राट के साथ ही हस्तिनापुर जायेगी । इसलिए अब आगे से शर्मिष्ठा से भी मिलना संभव नहीं हो सकेगा ।

उन्होंने पूरी नगरी को भांति भांति से सजाया था । पूरे शहर में रंगोली , मांडना और अल्पनाऐं सजाई गई । झालरें और फूल मालाऐं बांधी गईं । रोशनी में पूरा शहर नहा रहा था । पुष्पों के गलीचे बना दिये गये जिनकी महक मन को तरंगित कर रही थी । नाना भांति के पकवान बनाये गये जिनकी महक से लोग दूर दूर से खिंचे चले आ रहे थे । पूरे नगर में उत्सव का सा वातावरण था । जगह जगह पर मंगल गीत और बधावे गाये जा रहे थे ।

पुरानी बातों को भूलकर सब लोग हर्षोल्लास से बारात का स्वागत कर रहे थे । वर बने हुए ययाति कामदेव को भी लजा रहे थे । नगर की नारियां देवयानी के भाग्य की सराहना करते हुए कहने लगी कि पता नहीं इसने कौन से भगवान को प्रसन्न किया है जो उसे सम्राट ययाति जैसा वर मिला और हस्तिनापुर जैसा राज्य । हजारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भी ऐसा घर और वर मिलना दुर्लभ है । हो सकता है कि ये देवयानी के पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का फल हो ? पर जो भी हो, सब नारियां देवयानी के भाग्य से ईर्ष्या करने लगी थीं ।

सैरंध्रियों ने देवयानी का श्रंगार अद्भुत तरीके से किया था । देवयानी को तो श्रंगार की वैसे भी आवश्यकता नहीं थी , वह तो स्वयं सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति थी । लेकिन यदि गहने में हीरे , जवाहरात भी सजा दिये जायें तो उस गहने की आभा , कांति और भी बढ़ जाती है । कुछ कुछ उसी तरह जैसे सब्जी बनाने के पश्चात उसे हरा धनिया एवं अन्य तरीके से उसजाया जाता है । श्र॔गार से देवयानी के सौन्दर्य में और भी अधिक निखार आ गया था । उसके सौन्दर्य के समक्ष मेनका भी लज्जित हो रही थी । शर्मिष्ठा और देवयानी की समस्त सखियां उसे छेड़ रही थीं ।  "महारानी बनकर हमें भूल तो नहीं जाओगी , सखि ? अब तो तुम्हारा ऐश्वर्य देखकर देवांगनाऐं भी तुमसे ईर्ष्या करेंगी" । लोपामुद्रा बोली ।  "अपने रूप के जाल में बांध कर रखना महाराज को । सुना है कि राजे महाराजे जहां भी जाते हैं, एक महारानी अपने साथ ले आते हैं" । गार्गी खिलखिलाते हुए बोली ।  "सम्राट के समक्ष जरा भी नर्म मत होना । खूब तरसाना उन्हें । तभी तो प्रेम के सागर में डूबने का आनंद आयेगा । उनके जरा सी अनुनय विनय पर पिघल न जाना , पुरुषों को जितना तरसाओगी वे उतना ही पीछे दौड़ते हैं । जरा सी ढील देने पर किसी और को अपना लेते हैं । पूरा नियंत्रण करके रखना" । काव्या फुसफुसाते हुए बोली ।

काव्या की बात पर सभी सखियां "हो हो, ही ही" करके हंसने लगीं । रागिनी व्यंग्य कसते हुए बोली "तू तो ऐसे कह रही है जैसे कि तू बहुत अनुभवी है । तेरा तो अभी विवाह भी नहीं हुआ है , फिर तुझे कोसे पता" ? रागिनी की बात पर सब सखियां जोर जोर से हंसने लगीं । उन्हें जोर से हंसते देखकर सबका ध्यान उधर ही चला गया इससे सब सखियां झेंप गईं और सब एकदम से शांत हो गईं जैसे किलोल करती हुई बतखों के मध्य एक कंकर डालने से वे सहम जाती हैं ।

उन सबके बीच में कुछ पलों के लिए शर्मिष्ठा भी खिलखिलाने लगी थी । उसे आज न जाने कितने दिनों बाद खिलखिलाते हुए देखा था । महारानी प्रियंवदा यद्यपि शर्मिष्ठा से बहुत दूर थी किन्तु उनका सारा ध्यान शर्मिष्ठा पर ही लगा हुआ था । शर्मिष्ठा के अधरों पर मुस्कान कितनी मनोहारी लग रही थी । आज उसने भी बहुत हलका सा श्रंगार कर लिया था । वैसे वह श्रंगार करना तो नहीं चाहती थी । "दासी का भी कोई श्रंगार होता है क्या" ? यही सोचकर उसने देवयानी के पुराने वस्त्र पहन लिये थे । सुमंगला ने जब शर्मिष्ठा को पुराने वस्त्र पहने देखा तो उसका हृदय टूटकर चकनाचूर हो गया । उसने बड़ी मिन्नतें करके शर्मिष्ठा को एक नई साडी पहनाई और उसी ने उसका हलका मेकअप भी कर दिया था । इस मेकअप से उसके सौन्दर्य में सरलता और सादगी ऐसे घुल गई थी जैसे दूध में केसर और मिसरी घुल जाती है । उसने अपने केशों में एक गुलाब का पुष्प लगा लिया था । इससे उसका रूप अलौकिक लगने लगा था ।  शर्मिष्ठा के मन में भयंकर रूप से हलचल मची हुई थी । वह आज प्रथम बार अपने प्रियतम के दर्शन करेगी । कैसा होगा वह पल ? सोच सोचकर ही उसे रोमांच हो आया । उसके रोंगटे खड़े हो गये थे । कंचुकी में कसावट अधिक हो गई थी और कदम भारी हो गये थे । पूरा बदन पसीने से नहा गया था । "क्या सम्राट भी उसे देखेंगे" ? उसे इसी बात की चिंता थी । "दासियों की ओर सम्राटों की निगाह कहां जाती है ? उनकी सेज पे बिछने के लिए तो हर राजकुमारी लालायित रहती है । ऐसे में ययाति जैसा सम्राट एक तुच्छ दासी पर एक नजर डाल दे , यही उसके लिए सबसे बड़ा वरदान होगा" । इस भय से वह सम्राट की ओर देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी ।

देवयानी के साथ हलकी शरारत करने से वह सामान्य हो रही थी। उसके अधर भी मुस्कान से फैल गये थे । ययाति के साथ बैठे हुए अनेक युवक उसके संबंध में फब्तियां कस रहे थे । एक युवक बोला  "सम्राट, हमने पहली बार किसी गुलाब को अपने बालों में गुलाब लगाते हुए देखा है" ।  उसकी इस बात पर सब लोग ताली देकर हंसने लगे थे । उसकी फब्ती से शर्मिष्ठा को भी हंसी आ गई और उसने उस युवक को कृत्रिम क्रोध से देखा । प्रत्येक लड़की को उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करने पर अपार आनंद की प्राप्ति होती है किन्तु वह अपने नेत्रों को "आग्नेय अस्त्र" बनाकर ऐसे देखती है जैसे कि वह अभी एक पल में ही भस्म कर देगी । जबकि वह मन ही मन चाहती है कि कोई उसकी और प्रशंसा करे , उसे और छेड़े । इस छेड़छाड़ में उसे असीम आनंद की अनुभूति होती है किन्तु प्रकट ऐसे करती है जैसे कि उसे बहुत नागवार गुजर रहा है ।

शर्मिष्ठा का साहस नहीं हो रहा था कि वह एक नजर ययाति पर डाल ले । वह उनके अगल बगल में बैठे बांकों को तो देख रही थी किन्तु सम्राट को देखने से बच रही थी । कहते हैं कि लड़कियों के 5 आंखें होती हैं । दो तो सामने होती हैं जो सबको दिखती हैं परन्तु दो अगल बगल में और एक पीछे भी होती है । इन आँखों से वह अपने चारों ओर का दृश्य स्पष्ट देख सकती है । शर्मिष्ठा को ऐसा लगा कि दो जोड़ी आंखें उसे अनवरत घूर रही हैं । शर्मिष्ठा ने अचानक अपनी भरपूर दृष्टि से उधर देखा । देखते ही उसका दिल धक से रह गया । सम्राट उसे ही देख रहे थे । अचानक दोनों की आंखें चार हो गई थी । शर्मिष्ठा के बदन में 1100 वोल्टेज का करंट सा लगा । सम्राट का वह रूप उससे कहीं लाख गुना अधिक था जो राजशेखर ने उस दिन सभा में वर्णन करके सुनाया था । अकल्पनीय, अवर्णनीय रूप , रंग , यौवन सब कुछ था ययाति का । दृष्टि मिलते ही वह अपनी सुध बुध खो चुकी थी । शर्म से उसके पैर नौ नौ मन के हो गये थे । वह वहीं पर धम्म से बैठ गई ।

श्री हरि  29.8.23

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3 Comments

Babita patel

04-Sep-2023 08:30 AM

Awesome

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kashish

03-Sep-2023 04:32 PM

Nice

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madhura

03-Sep-2023 09:14 AM

Nice

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